Saturday 5 May 2012

ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ......

मैं प्यासा पंछी हूँ, लाचार अभागा हूँ,
ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ।

बेजान बनाती है, पीड़ा ये जीवन की,
हर रोज़ सताती है, कुंठा अन्तर्मन की,
मन में भड़की ज्वाला, सदियों से जलता हूँ,
ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ।

राहों का अन्धेरा, ये नष्ट नहीं होता,
इतनी चोटें खाई, अब कष्ट नहीं होता,
शाखों से टूटा हूँ, पत्ता पीला सा हूँ।
ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ।

टूटी अभिलाषा है, घनघोर निराशा है,
बिखरे बिखरे सपने, जीवन ढलता सा है।
अंतिम साँसें लेता, दीपक बुझता हूँ।
ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ।

........इमरान खान मेवाती