Saturday 5 May 2012

ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ......

मैं प्यासा पंछी हूँ, लाचार अभागा हूँ,
ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ।

बेजान बनाती है, पीड़ा ये जीवन की,
हर रोज़ सताती है, कुंठा अन्तर्मन की,
मन में भड़की ज्वाला, सदियों से जलता हूँ,
ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ।

राहों का अन्धेरा, ये नष्ट नहीं होता,
इतनी चोटें खाई, अब कष्ट नहीं होता,
शाखों से टूटा हूँ, पत्ता पीला सा हूँ।
ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ।

टूटी अभिलाषा है, घनघोर निराशा है,
बिखरे बिखरे सपने, जीवन ढलता सा है।
अंतिम साँसें लेता, दीपक बुझता हूँ।
ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ।

........इमरान खान मेवाती

Saturday 21 April 2012

खो गये हमसे जो थे जान से प्यारे सपने.....

खो गये हमसे जो थे जान से प्यारे सपने,
अब तो सच हो न सकेंगे वो हमारे सपने।
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जलती आँखों में नमी दे गये ये क्या कम है,
बनके आँखों से गिरे आब के धारे सपने।
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पसे जिनदाने नज़र कैद रहे हैं बरसों,
बड़े मायूस ये हालात के मारे सपने।
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बन के किरचे यूँ चुभे आंख में ये अब मेरी,
खून के अश्क रुलाते हैं ये सारे सपने।
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कभी चमके थे उम्मीदों के जो सूरज बनकर,
अब तो टूटे हैं बिखरते हैं बेचारे सपने।

Sunday 18 March 2012

मगर ख़ुश हूँ......

मैं तन्हा हूँ मगर ख़ुश हूँ,
मैं प्यासा हूँ मगर ख़ुश हूँ।


मैं धुँधला आबगीना छन,
से टूटा हूँ मगर खुश हूँ।


मैं तिनकों सा हवाओं में,
बिखरता हूँ मगर खुश हूँ।


मैं सूने स्याह कोने का,
अँधेरा हूँ मगर खुश हूँ।

मैं दिल को ग़म के दरिया में,
डुबोता हूँ मगर खुश हूँ।

मैं सारे ख्वाब आतिश में,
जलाता हूँ मगर खुश हूँ।


मैं थोड़ा सा तुम्हें खोकर,
हिरासाँ हूँ मगर खुश हूँ।


मैं मंज़िल के भरोसे पर,
भटकता हूँ मगर खुश हूँ।

मैं ग़मगीं हो के ख़ुद पे ही,
बिफरता हूँ मगर खुश हूँ।

Monday 2 January 2012

मैं घायल सा परिंदा हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं????

मैं घायल सा परिंदा हूँ 
कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं,
हैं पर टूटे मैं सहमा हूँ 
कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.

यही किस्मत से पाया है, जो अपना था पराया है,
परीशां हूँ मैं तनहा हूँ, कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.

भले तपता ये सहरा हो, तुम्हें अपना बनाया तो,
घना साया सा पाया हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.

तुम्ही से जिंदगी मेरी, तुम्ही से हर ख़ुशी मेरी,
तुम्हें छोडूं तो जलता हूँ, कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.

मेरी गजलें अधूरी थी, तुम्हें पाया तो पूरी की,
मैं सबकुछ तुम से पाता हूँ, कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं