हमनशीं राह पे बस और न छल दो मुझको,
मुझे सीने से लगाओ या मसल दो मुझको।
मैं ये सुनता हूँ के नफरत है तुम्हें मुझसे अब,
चलो ऐसा है तो नफरत ही असल दो मुझको।
दिले बीमार ने बस कोने मकाँ माँगा है,
मेरी चाहत ये कहाँ ताज महल दो मुझको।
मेरे बिगड़े हुए हालात में तुम आ जाओ,
वक़्त ए आखिर है के दो पल तो सहल दो मुझको।
डबडबाई हुई आँखों से न रुखसत करना,
बड़ा लम्बा है सफर खिलते कँवल दो मुझको।
मुझे सीने से लगाओ या मसल दो मुझको।
मैं ये सुनता हूँ के नफरत है तुम्हें मुझसे अब,
चलो ऐसा है तो नफरत ही असल दो मुझको।
दिले बीमार ने बस कोने मकाँ माँगा है,
मेरी चाहत ये कहाँ ताज महल दो मुझको।
मेरे बिगड़े हुए हालात में तुम आ जाओ,
वक़्त ए आखिर है के दो पल तो सहल दो मुझको।
डबडबाई हुई आँखों से न रुखसत करना,
बड़ा लम्बा है सफर खिलते कँवल दो मुझको।