जगजीत सिंह को मेरी खिराज ए अकीदत (श्रद्धांजली)
क़लम ये रुकी है बहर खो रही है,
खड़ी वो बेचारी गज़ल रो रही है।
तुझी ने ग़ज़ल से मुखातिब कराया,
तुझे सुन मेरे दिल के अरमान जागे,
क़लम ये रुकी है बहर खो रही है,
क़लम ये रुकी है बहर खो रही है,
मुसलसल-लगातार,
शिकस्ता-हारे हुये,
शीरीं ज़बाँ-मीठी बोली वाला,
आलूद गौहर से-आँसू भरी।
तू ही चल दिया तोड़ कच्चे ये धागे,
सभी को गुज़रना है मुझको पता है,
मुझे पर तसल्ली नहीं हो रही है
क़लम ये रुकी है बहर खो रही है,
खड़ी वो बेचारी गज़ल रो रही है
खुदा ने गमों की वो आँधी चलाई
जिगर है शिकस्ता न तसकीन पाई,
सुकूँ तुझसे पाया कभी दिल जो टूटा,
तेरी शायरी सुन मेरा वक़्त बीता,
अदब का तुझी से समन्दर रवाँ था,
तू हामी ए उर्दू, तू शीरीं ज़बां था,
गुहर से हैं आलूद सारी निगाहें,
के रूहे मुबारक तिरी सो रही है,
क़लम ये रुकी है बहर खो रही है,
खड़ी वो बेचारी गज़ल रो रही है।
मुसलसल-लगातार,
शिकस्ता-हारे हुये,
शीरीं ज़बाँ-मीठी बोली वाला,
आलूद गौहर से-आँसू भरी।