Wednesday, 1 June 2011

गुल तेरे खार लिए बैठे हैं...

याद के ढेर से अम्बार लिए बैठे हैं,
फूल के बदले में हम खार लिए बैठे हैं.

क़त्ल करके जिसे दफना भी दिया है कब का,
सामने अपने वही प्यार लिए बैठे हैं.

जीत का सेहरा तेरे सर पे सजा है हम तो,
हाथ में अपने फ़क़त हार लिए बैठे हैं.

दुश्मन अब वार भी करता है तो शर्माता है,
अनगिनत ज़ख्म लहू-दार लिए बैठे हैं.

पत्थरों का भी मुझे देख के दिल भर आया,
आब आँखों में लगातार लिए बैठे हैं.

उफ़ भी दुनिया को सुनाई न जिन्होंने थी कभी,
अब सदा वो सरे बाज़ार लिए बैठे हैं.

अब तमाम उम्र ये ग़म साथ रहेंगे अपने,
फौत खुशियों का हम मजार लिए बैठे हैं.

तेरे आने का तो इमकान नहीं है फिर भी,
अपनी आँखों में इंतजार लिए बैठे हैं.

तेरी इज्ज़त में तो ईजाफा हुआ ही होगा,
हम तेरे क़दमों में दस्तार लिए बैठे हैं.

जब से मायूस ये तहरीर हुई है तब से,
ग़म में डूबे हुए अशआर लिए बैठे हैं. 

अगर इमरोज़ तड़पता है परिंदा प्यासा,
लोग पानी वहां बेकार लिए बैठे हैं.
 


चाक सीना है तो क्या फिर भी चलो वार करो,
हम तो को कब से इसे तैयार लिए बैठे हैं.

No comments:

Post a Comment