मैं तन्हा हूँ मगर ख़ुश हूँ,
मैं प्यासा हूँ मगर ख़ुश हूँ।
मैं धुँधला आबगीना छन,
से टूटा हूँ मगर खुश हूँ।
मैं तिनकों सा हवाओं में,
बिखरता हूँ मगर खुश हूँ।
मैं सूने स्याह कोने का,
अँधेरा हूँ मगर खुश हूँ।
मैं दिल को ग़म के दरिया में,
डुबोता हूँ मगर खुश हूँ।
मैं सारे ख्वाब आतिश में,
जलाता हूँ मगर खुश हूँ।
मैं मंज़िल के भरोसे पर,
मैं प्यासा हूँ मगर ख़ुश हूँ।
मैं धुँधला आबगीना छन,
से टूटा हूँ मगर खुश हूँ।
मैं तिनकों सा हवाओं में,
बिखरता हूँ मगर खुश हूँ।
मैं सूने स्याह कोने का,
अँधेरा हूँ मगर खुश हूँ।
मैं दिल को ग़म के दरिया में,
डुबोता हूँ मगर खुश हूँ।
मैं सारे ख्वाब आतिश में,
जलाता हूँ मगर खुश हूँ।
मैं थोड़ा सा तुम्हें खोकर,
हिरासाँ हूँ मगर खुश हूँ।
मैं मंज़िल के भरोसे पर,
भटकता हूँ मगर खुश हूँ।
मैं ग़मगीं हो के ख़ुद पे ही,
बिफरता हूँ मगर खुश हूँ।
बिफरता हूँ मगर खुश हूँ।
Bahut pyaari aur masoom si ghazal !!
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