Monday, 17 March 2014

मुझे सीने से लगाओ या मसल दो मुझको.....

हमनशीं राह पे बस और न छल दो मुझको,
मुझे सीने से लगाओ या मसल दो मुझको।

मैं ये सुनता हूँ के नफरत है तुम्हें मुझसे अब,
चलो ऐसा है तो नफरत ही असल दो मुझको।

दिले बीमार ने बस कोने मकाँ माँगा है,
मेरी चाहत ये कहाँ ताज महल दो मुझको।

मेरे बिगड़े हुए हालात में तुम आ जाओ,
वक़्त ए आखिर है के दो पल तो सहल दो मुझको।

डबडबाई हुई आँखों से न रुखसत करना,
बड़ा लम्बा है सफर खिलते कँवल दो मुझको।

Saturday, 5 May 2012

ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ......

मैं प्यासा पंछी हूँ, लाचार अभागा हूँ,
ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ।

बेजान बनाती है, पीड़ा ये जीवन की,
हर रोज़ सताती है, कुंठा अन्तर्मन की,
मन में भड़की ज्वाला, सदियों से जलता हूँ,
ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ।

राहों का अन्धेरा, ये नष्ट नहीं होता,
इतनी चोटें खाई, अब कष्ट नहीं होता,
शाखों से टूटा हूँ, पत्ता पीला सा हूँ।
ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ।

टूटी अभिलाषा है, घनघोर निराशा है,
बिखरे बिखरे सपने, जीवन ढलता सा है।
अंतिम साँसें लेता, दीपक बुझता हूँ।
ढूँढूँ जाने किसको, मैं उड़ता फिरता हूँ।

........इमरान खान मेवाती

Saturday, 21 April 2012

खो गये हमसे जो थे जान से प्यारे सपने.....

खो गये हमसे जो थे जान से प्यारे सपने,
अब तो सच हो न सकेंगे वो हमारे सपने।
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जलती आँखों में नमी दे गये ये क्या कम है,
बनके आँखों से गिरे आब के धारे सपने।
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पसे जिनदाने नज़र कैद रहे हैं बरसों,
बड़े मायूस ये हालात के मारे सपने।
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बन के किरचे यूँ चुभे आंख में ये अब मेरी,
खून के अश्क रुलाते हैं ये सारे सपने।
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कभी चमके थे उम्मीदों के जो सूरज बनकर,
अब तो टूटे हैं बिखरते हैं बेचारे सपने।

Sunday, 18 March 2012

मगर ख़ुश हूँ......

मैं तन्हा हूँ मगर ख़ुश हूँ,
मैं प्यासा हूँ मगर ख़ुश हूँ।


मैं धुँधला आबगीना छन,
से टूटा हूँ मगर खुश हूँ।


मैं तिनकों सा हवाओं में,
बिखरता हूँ मगर खुश हूँ।


मैं सूने स्याह कोने का,
अँधेरा हूँ मगर खुश हूँ।

मैं दिल को ग़म के दरिया में,
डुबोता हूँ मगर खुश हूँ।

मैं सारे ख्वाब आतिश में,
जलाता हूँ मगर खुश हूँ।


मैं थोड़ा सा तुम्हें खोकर,
हिरासाँ हूँ मगर खुश हूँ।


मैं मंज़िल के भरोसे पर,
भटकता हूँ मगर खुश हूँ।

मैं ग़मगीं हो के ख़ुद पे ही,
बिफरता हूँ मगर खुश हूँ।

Monday, 2 January 2012

मैं घायल सा परिंदा हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं????

मैं घायल सा परिंदा हूँ 
कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं,
हैं पर टूटे मैं सहमा हूँ 
कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.

यही किस्मत से पाया है, जो अपना था पराया है,
परीशां हूँ मैं तनहा हूँ, कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.

भले तपता ये सहरा हो, तुम्हें अपना बनाया तो,
घना साया सा पाया हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.

तुम्ही से जिंदगी मेरी, तुम्ही से हर ख़ुशी मेरी,
तुम्हें छोडूं तो जलता हूँ, कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.

मेरी गजलें अधूरी थी, तुम्हें पाया तो पूरी की,
मैं सबकुछ तुम से पाता हूँ, कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं

Thursday, 3 November 2011

जगजीत सिंह को मेरी खिराज ए अकीदत (श्रद्धांजली)

जगजीत सिंह को मेरी खिराज ए अकीदत (श्रद्धांजली)

 
क़लम ये रुकी है बहर खो रही है,
खड़ी वो बेचारी गज़ल रो रही है।

तुझी ने ग़ज़ल से मुखातिब कराया,
तुझी ने तरन्नुम बनाना सिखाया, 
तुझे सुन मेरे दिल के अरमान जागे,
तू ही चल दिया तोड़ कच्चे ये धागे,
सभी को गुज़रना है मुझको पता है,
मुझे पर तसल्ली नहीं हो रही है

क़लम ये रुकी है बहर खो रही है,
खड़ी वो बेचारी गज़ल रो रही है

खुदा ने गमों की वो आँधी चलाई
जिगर है शिकस्ता न तसकीन पाई,
सुकूँ तुझसे पाया कभी दिल जो टूटा,
तेरी शायरी सुन मेरा वक़्त बीता,
अदब का तुझी से समन्दर रवाँ था,
तू हामी ए उर्दू, तू शीरीं ज़बां था,
गुहर से हैं आलूद सारी निगाहें,
के रूहे मुबारक तिरी सो रही है,

क़लम ये रुकी है बहर खो रही है,
खड़ी वो बेचारी गज़ल रो रही है।

मुसलसल-लगातार, 
शिकस्ता-हारे हुये, 
शीरीं ज़बाँ-मीठी बोली वाला, 
आलूद गौहर से-आँसू भरी।

Wednesday, 1 June 2011

गुल तेरे खार लिए बैठे हैं...

याद के ढेर से अम्बार लिए बैठे हैं,
फूल के बदले में हम खार लिए बैठे हैं.

क़त्ल करके जिसे दफना भी दिया है कब का,
सामने अपने वही प्यार लिए बैठे हैं.

जीत का सेहरा तेरे सर पे सजा है हम तो,
हाथ में अपने फ़क़त हार लिए बैठे हैं.

दुश्मन अब वार भी करता है तो शर्माता है,
अनगिनत ज़ख्म लहू-दार लिए बैठे हैं.

पत्थरों का भी मुझे देख के दिल भर आया,
आब आँखों में लगातार लिए बैठे हैं.

उफ़ भी दुनिया को सुनाई न जिन्होंने थी कभी,
अब सदा वो सरे बाज़ार लिए बैठे हैं.

अब तमाम उम्र ये ग़म साथ रहेंगे अपने,
फौत खुशियों का हम मजार लिए बैठे हैं.

तेरे आने का तो इमकान नहीं है फिर भी,
अपनी आँखों में इंतजार लिए बैठे हैं.

तेरी इज्ज़त में तो ईजाफा हुआ ही होगा,
हम तेरे क़दमों में दस्तार लिए बैठे हैं.

जब से मायूस ये तहरीर हुई है तब से,
ग़म में डूबे हुए अशआर लिए बैठे हैं. 

अगर इमरोज़ तड़पता है परिंदा प्यासा,
लोग पानी वहां बेकार लिए बैठे हैं.
 


चाक सीना है तो क्या फिर भी चलो वार करो,
हम तो को कब से इसे तैयार लिए बैठे हैं.